Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Rehai By M.Mubin


कहानी      रिहाई    लेखक  एम मुबीन   

दोनों चुपचाप पुलिस स्टेशन के कोने में रखी एक बेंच पर बैठे साहब के आने का इंतजार कर रहे थे. उन्हें वहां बैठे तीन घंटे हो गए थे. दोनों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि एक दूसरे से बातें करें. जब भी दोनों एक दूसरेको देखते और दोनों की नज़रें मिनतीं  तो वह एक दूसरे को दोषी मानते.
दोनों में से दोष किसका था, वह स्‍वंय  अभी तक यह तय नहीं कर पाए थे. कभी लगता वे अपराधी हैं कभी लगता जैसे एक पाप के आरोप  में दूसरे को सज़ा मिल रही है. समय गुजारे के लिए वह अंदर चल रही गतिविधियों की समीक्षा करते. उनके लिए यह जगह बिल्कुल अजनबी थी. दोनों को याद नहीं आ रहा था कि कभी उन्हें किसी काम से भी उस जगह या ऐसी जगह जाना पड़ा था. या कभी जाना पड़ा हो तो भी वह स्थान ऐसा नहीं था .
सामने लॉक अप था. छ सलाखों वाले दरवाजे और दरवाजों के छोटे छोटे कमरे. हर कमरे में आठ दस लोग बंद थे. कोई सो रहा था तो कोई ऊँघ रहा था, कोई आपस में बातें कर रहा था तो कोई सलाखों के पीछे से झांक कर कभी उन्हें तो कभी पुलिस स्टेशन में आने वाले सिपाहियों को देख कर भददे अंदाज़ में मुस्कुरा रहा था.
उनमें से कुछ के चेहरे इतने भयानक और कर्कश थे कि उन्हें देखते ही अंदाज़ा हो जाता था कि उनका संबंध अपराधियों से है या वह स्‍वंय  अपरधी हैं. परंतु कुछ चेहरे बिल्कुल उनसे मिलते जुलते थे. मासूम भोले भाले. सलाखों के पीछे से झांक कर बार बार उन्हें देख रहे थे. जैसे उनके भीतर उत्सुकता जागा है.
"तुम लोग शायद हमारे समुदाय से संबंध रखते हो. तुम लोग यहां कैसे ऑन फंसे?"
 वह जब भी चेहरों को देखते तो दिल में एक ही विचार आता कि देखने में  तो यह भोले भाले मासूम और शिक्षित लोग लगते हैं यहां कैसे  इस नरक में ऑन फंसे.
बाहर दरवाजे पर दो बंदूक धारी  पहरा दे रहे थे. लॉक आपके पास भी दो सिपाही बंदूक लिए खड़े थे. कोने वाली मेज़ पर एक वर्दी वाला लगातार कुछ लिख रहा था. कभी कोई सिपाही आकर उसकी मेज़ के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता तो वह अपना काम छोड़ कर उससे बातें करने लगता. फिर उसके जाने के बाद अपने काम में व्यस्त हो जाता था.
उसके बाजू में एक मेज़ खाली पड़ी थी. उस मेज़ पर दोनों के ब्रेफ केस रखे हुए थे. उनके साथ और भी लोग रेलवे स्टेशन से पकड़ कर लाए गए थे उनका सामान भी उसी मेज़ पर रखा हुआ था. वे भी साथ ही बेंच पर बैठे थे परंतु किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि एक दूसरे से बातें कर सके. एक दो बार इनमें से कुछ लोगों ने आपस में बातें करने की कोशिश की थी. उसी समय सामने खड़ा सिपाही गरज उठा.
"हे चुप! आवाज़ मत निकालो, शोर मत करो. यदि शोर किया तो लॉक अप में डाल दूंगा."
इसके बाद उन लोगों ने कानाफूसी में भी एक दूसरे से बातें करने की कोशिश नहीं की थी. वह सब एक दूसरे के लिए अजनबी थे. या संभव है एक दूसरे केा  जानते हों जिस तरह वह और अशोक एक दूसरे के जान पहचानवाले  थे. ना केवल जान पहचान वाले  बल्कि दोस्त थे. एक ही ऑफिस में वर्षों से काम करते थे और साथ ही इस संकट  में गिरफ्तार हुए थे.
आज जब दोनों ऑफिस से निकले थे तो दोनों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस तरह संकट  में गिरफ्तार हो जाएंगे.
ऑफिस से निकलते हुए अशोक ने कहा था. "मेरे साथ जरा बाजार चलोगें ? एक छुरी का सेट खरीदना है. पत्नी कई दिनों से कह रही है, परंतु व्यस्तता के कारण बाजार तक जाना नहीं हो रहा है."
"चलो!" उसने घड़ी देखते हुए कहा. मुझे सात बजे की तेज लोकल पकड़ना है और अब छह बज रहे हैं. इतनी देर में हम यह काम निपटा सकते हैं. "वह अशोक के साथ बाजार चला गया था.
एक दुकान से उन्होंने छु‍िरयों का सेट खरीदा था. उस सेट में विभिन्न आकार की आठ दस छुरियां थीं. उनकी धार बड़ी तेज थीं और दुकानदार का दावा था प्रतिदिन  उपयोग के बाद भी दो सालों तक उनकी धार खराब नहीं होगी क्योंकि यह स्टेन लैस स्टील की बनी हुई हैं मूल्य भी वाजिब था.
भुगतान कर अशोक ने सेट अपनी अटैची में रखा और वह बातें करते हुए रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए. स्टेशन पहुंचे तो सात बजने में बीस मिनट बाकी थे दोनों की तेज लोकल के आने में पूरे बीस मिनट बाकी थे.
तेज ट्रेन वाले प्लेटफार्म पर अधिक भीड़ नहीं थी धीमी ट्रेन वाले प्‍लेटफार्म  पर अधिक भीड़ थी लोग शायद बीस मिनट तक किसी गाड़ी का इंतजार करने की तुलना में धीमी गाड़ियों से जाना पसंद कर रहे थे.
अचानक वह चौंक पड़े. प्‍लेटफार्म  पर पूरी पुलिस  फोर्स   आई थी. और उसने प्‍लेटफार्म के हर व्यक्ति को अपनी जगह स्तब्ध कर दिया था. दो तीन सिपाही आठ आठ दस दस लोगों को घेर लेते उनसे पूछताछ कर उनके सामान और सूट केस, अटैचयों की तलाशी लेते कोई संदेहास्पद   वस्तु न मिलने की स्थिति में उन्हें जाने देते या यदि उन्हें कोई संदिग्ध या ईच्छि‍त  वस्तु मिल जाती तो तुरंत दो सिपाही उस व्यक्ति को पकड़ कर प्‍लेटफार्म से बाहर खड़ी पुलिस जीप में बिठा आते.
उन्हें भी तीन सिपाहियों ने घेर लिया था.
"क्या बात है हवलदार साहब?" उसने पूछा. "यह तलाशियां क्यों ली जा रही हैं?"
"हमें पता चला है कि कुछ आतंकवादी   इस समय प्‍लेटफार्म से हथियार ले जा रहे हैं. उन्हें गिरफ्तार करने के लिए यह कार्रवाई की जा रही है." सिपाही ने उत्‍तर  दिया.
वह कुल आठ लोग थे जिन्हें उन सिपाहियों ने घेर रखा था उनमें से चार की तलाशियां हो चुकी थीं और उन्हें छोड़ दिया गया था. अब अशोक की बारी थी.
शारीरिक तलाशी लेने के बाद अशोक को ब्रेफ केस खोलने के लिए कहा गया. ब्रेफ केस खोलते ही एक दो चीजों को उलट पलट कर देखने के बाद जैसे ही उनकी नज़रें छु‍िरयों के सेट पर पड़ी वह उछल पड़े.
 "बाप रे इतनी छुरियां? साब हथियार मिले हैं. "एक ने आवाज देकर थोडी दूर खडे इन्सपेक़्टर को बुलाया.
"हवलदार साहब यह हथियार नहीं हैं. सब्जी तरकारी काटने की छु‍िरयों का सेट है." अशोक ने घबराई हुई आवाज़ में उन्हें समझाने की कोशिश की.
"हां हवलदार साहब यह घरेलू उपयोग की छु‍िरयों का सेट है हमने अभी बाजार से खरीदा है." उसने भी अशोक की सफाई पेश करने की कोशिश की.
"तो  तू भी इसके साथ है, तू भी इसका साथी है?" कहते हुए एक सिपाही ने तुरंत उसे दबोच लिया. दो सिपाही पहले ही अशोक को दबोच चुके थे. "हम सच कहते हैं हवलदार साहब यह हथियार नहीं हैं यह घरेलू उपयोग की छु‍िरयों का सेट है." अशोक ने एक बार फिर उन लोगों को समझाने की कोशिश की.
"चुप बैठ!" एक जोरदार डंडा उसके सिर परपड़ा.
"हवलदार साहब आप मार क्यों रहे हैं?" अशोक ने विरोध किया.
"मारें नहीं तो क्या तेरी पूजा करें. यह हथियार साथ लिए फिरता है. दंगा  फसाद  करने का इरादा है. ज़रूर तेरा संबंध आतंक  संगठनों से है." एक सिपाही बोला और दो सिपाही उस पर डंडे बरसाने लगे. उसने अशोक को बचाने की कोशिश की तो उस पर भी डंडे पडने लगे. उसने खैरियत इसी में समझी कि चुप रहे. दो चार डंडे उस पर पड़ने के बाद हाथ रुक गया. परंतु अशोक का बुरा हाल था. वह जैसे ही कुछ कहने के लिए मुंह खोलता उस पर डंडे बरसने लगते और विवश उसे चुप होना पड़ता.
"क्या बात है?" इस बीच इंस्पेक्टर वहां पहुंच गया जिसे उन्होंने आवाज दी थी.
"साब उसके पास हथियार मिले हैं."
"उसे तुरंत थाने ले जाओ." इन्‍सपेक्‍टर  ने आदेश दिया और दूसरी ओर बढ़ गया. चार सिपाहियों ने उन्हें पकड़ा और घसीटते हुए प्लेटफार्म के बाहर ले जाने लगे. बाहर एक पुलिस जीप खड़ी थी. इस जीप में उन्हें बिठा दिया गया जीप में दो चार आदमी बैठे थे. इन सब को चार सिपाहियों ने अपनी सुरक्षा में ले रखा था. उसी समय जीप चल पड़ी.
"आप लोगों को किस आरोप में गिरफ्तार किया गया है?" जैसे ही उन लोगों में से एक आदमी ने उनसे पूछने की कोशिश की एक सिपाही का फ़ोलादी मक्का उसके चेहरे पर पड़ा.
"चुपचाप बैठा रह नहीं तो मुंह तोड़ दूँगा." इस आदमी के मुंह से खून निकल आया था वह अपना मुँह पकड़ कर बैठ गया. और मुंह से निकलते खून को जेब से रूमाल निकाल कर साफ करने लगा.
पुलिस स्टेशन लाकर उन्हें उस कोने की खंडपीठ पर बैठा दिया गया और उनका सामान उस मेज़ पर रख दिया गया जो शायद इंस्पेक्टर की थी. जब वह पुलिस स्टेशन पहुंचे तो निरंतर लिखने वाले ने लाने वाले सिपाहियों से पूछा.
"ये लोग कौन हैं? उन्हें कहां से ला रहे हो?"
"रेलवे स्टेशन पर छापे के दौरान पकड़े गए हैं उनके पास से संदिग्ध चीजें या हथियार बरामद हुए हैं."
"फिर उन्हें यहाँ क्यों बैठा रहे हो? उन्हें लॉक अप में डाल दो."
"साहब ने कहा है कि उन्हें बाहर बिठा कर रखो वह आकर उनके बारे में फैसला करेंगे." बेंच पर बैठा पहले उनकी अच्छी तरह तलाशी ली गई थी. कोई संदेहास्पद वस्‍तु  बरामद नहीं हुई यही गनीमत था. उनकी पुलिसस्टेशन आने की थोड़ी देर बाद दूसरा जथा पुलिस स्टेशन पहुंचा. वह भी आठ दस लोग थे शायद उन्हें किसी दूसरे इंस्पेक्टर ने पकड़ा था इसलिए उन्हें दूसरे कमरे में बिठाया गया. और भी इस तरह के कितने लोग लाए गए उन्हें अंदाज़ा नहीं था क्योंकि वह केवल कमरे की गतिविधियां देख पा रहे थे जिसमें वह मकीद थे.
नए सिपाही आते तो उन पर एक उचटती नज़र डालकर अपने साथियों से पूछ लेते. "यह कहां से पकड़े गए हैं. जुए घर से, ब्लू फिल्म देखते हुए या वेश्‍याओं के अड्डों से?"
"हथियारों की खोज में. आज रेलवे स्टेशन पर छापा मारा था. वहां पर पकड़े गए हैं."
"क्या बरामद हुआ?"
"पर्याप्त तो कुछ भी बरामद नहीं हो सका. खोज जारी है. साब अभी नहीं आए हैं. आईं तो पता चलेगा कि खबर सही थी या गलत और छापे से कुछ हासिल हुआ है या नहीं?"
जैसे जैसे समय बीत रहा था उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. अशोक की हालत गैर थी. उसके चेहरे पर उसके दिल की स्थिति उभर रही थी. हर क्षण ऐसा लगता था जैसे वह अभी चकरा कर गिर जाएगा. उसे अनुमान था जो भय से डर रहा है अशोक की आशंकाएं कुछ अधिक ही होंगे. उसे इस बात का संतोष था तलाशी में उसके पास से कोई भी संदेहास्पद वस्तु बरामद नहीं हुई थी. इसलिए न तो पुलिस इस पर कोई आरोप लगा सकती है न उस पर हाथ डाल सकती है. परंतु संकट  यह थी कि वह अशोक के साथ गिरफ्तार हुआ है. अशोक पर जो भी आरोप पत्र लगाया जाएगा इसमें उसे भी बराबर का हिस्सा दिया जाएगा. कभी कभी उसे गुस्सा आ जाता .
'आखिर हमें किस अपराध में गिरफ्तार किया गया है, किस अपराध में हमारे साथ आदी अपराधियों सा अपमान जनक व्‍यवहार किया जा रहा है और यहां घंटों से बिठा कर रखा गया है और हमे अपमानित  की जा रही है? हमारे पास तो ऐसी कोई संदेहास्पद  आपत्तिजनक  वस्‍तु  बरामद नहीं हुई है. वह छु‍िरयों का सेट? वह तो घरेलू उपयोग की चीजें हैं. उन्हें अपने पास रखना या कहीं ले जाना कोई अपराध नहीं है. अशोक इन चीजों से कोई हत्या और रक्तपात या दंगा फसाद नहीं करना चाहता था वह तो उन्हें अपने घर अपने घरेलू उपयोग के लिए ले जाना चाहता था. "परंतु किससे ये बातें कहे, किस के सामने अपनी बेगुनाही की सफाई पेश करे. यहां तो आवाज़ भी मुँह से निकलती है तो उत्‍तर  में कभी गालियां मिलती हैं तोकभी घूँसे. इस संकट  से कैसे छुटकारा मिल दोनों अपनी अपनी तौर पर सोच रहे थे जब सोचों से घबरा जाते तो कानाफूसी में एक दूसरे से एक दो बातें कर लेते.
"अनवर अब क्या होगा?"
"कुछ नहीं होगा अशोक! तुम धैर्य  रखो. हमने कोई अपराध नहीं किया है."
"फिर हमें यहां यूँ क्यों बिठा कर रखा गया है. हमारे साथ आदी अपराधियों का व्यवहार क्यों किया जा रहा है?"
"यहाँ के रूप तरीके ऐसे ही हैं. अब हमारा केस किसी के सामने गया भी नहीं है."
"मेरा साला  स्थानीय एम. एल. ए का दोस्त है. उसे फोन करके सारी बातें बता दें, वह हमें इस नरक से मुक्ति  दिला देगा."
"पहली बात तो ये लोग हमें फोन करने नहीं देंगे. फिर थोड़ा धैर्य  रखो इंस्पेक्टर के आने के बाद क्या स्थिति पैदा होती है उस समय इस बारे में सोचेंगे."
"इतनी देर हो गई घर न पहुंचने पर पत्नी चिंतित हो गयी."
"मेरी भी यही स्थिति है. एक दो घंटे लेट हो जाता हूँ तो वह घबरा जाती है. इन लोगों का कोई भरोसा नहीं कुछ न मिलने की स्थिति में किसी भी आरोप में फंसा देंगे."
"अरे सब उनका पैसा खाने के लिए यह नाटक रचाया गया है." बगल में बैठा आदमी उनकी कानाफूसी  की बातें सुनकर फुसफुसाया. "कड़की लगी हुई है किसी अपराधी से हफता  नहीं मिला होगा या उसने हफता  देने से इन्‍कार कर दिया होगा. उसके विरूध  तो कुछ नहीं कर सकते उसकी भरपाई करने के लिए हम शरीफों को पकड़ा गया है. "
"तुम्हारे पास क्या मिला?" उसने पलट कर उस आदमी से पूछा.
"एसिड की बोतल." वह आदमी बोला. "उस एसिड से मैं अपने बीमार पिता के कपड़े धोता हूं जो कई महीनों से बिस्तर पर है. उसकी बीमारी के जीवाणु मर जाएं उनसे किसी को नुकसान न पहुंचे इसके लिए डॉक्टर ने उसके सारे कपड़े इस एसिड में धोने के लिए कहा है. आज एसिड समाप्त हो गया था वह मेडिकल स्टोर से खरीद कर ले जा रहा था. मुझे क्या पता था इस संकट  में पड़ जाऊँगा. वरना मैं अपने घर के पास के मेडिकल स्टोर से खरीद लेता. "
"हे! क्या खुसर पुसर चालू है?" उनकी कानाफूसी सुनकर एक सिपाही दहाड़ा तो वह सहम कर चुप हो गए. मन में फिर अशंकाएं सिर उठाने लगे. यदि अशोक पर कोई   अपराध लगा के गिरफ़्तार कर लिया गया तो उसे भी बख्शा नहीं जाएगा. अशोक की मदद करने वाला साथी उसे करार देकर इस पर भी वही आरोप पत्र लगाना कौन सी बड़ी बात है. पुलिस तो उन पर आरोपपत्र लगा उन्हें अदालत में पेश कर देगी. उन्हें अदालत में अपनी बेगुनाही साबित करनी होगी. और भी अपराध को साबित करने में सालों लग जाएंगे. वर्षों अदालत कचहरी के चक्कर. इस कल्पना से ही उसे झुरझुरी आ गई. फिर लोग क्या कहेंगे किस किस को वह अपनी बेगुनाही की दास्तान सुना कर अपनी सफाई पेश करेंगे.
अगर पुलिस ने उन पर आरोप पत्र लगा तो मामला केवल अदालत तक सीमित नहीं रहेगा. पुलिस उनके बारे में बढ़ा चढ़ा कर अखबारों में भी उनके अपराध की कहानी छपवा देगी. अखबार वाले तो इस तरह की कहानियों की ताक में रहते हैं.
"दो सफेद पोशों के काले कारनामे."
"एक कार्यालय में काम करने वाले दो क्लर्क आतंकवादियों के साथी निकले."
"एक कुख्यात गिरोह से संबंध रखने वाले दो गुंडे गिरफ्तार."
"दंगे  के लिए हथियार ले जाते हुए दो गुंडे गिरफ्तार."
"शहर के दो शरीफ लोगों का संबंध खतरनाक आतंकवादी   संगठनों से निकला." इन बातों को सोच कर वह अपना सिर पकड़ लेता. जैसे जैसे समय बीत रहा था. उसकी हालत खराब  हो रही थी और उसे इन बातों विचारों से छुटकारा पाना मुश्किल हो रहा था.
ग्यारह बजे के समीप  इंस्पेक्टर आया वह गुस्से में भरा था.
"नालायक, पाजी, हरामी, साले कुछ भी झूठी खबर  देकर हमारा समय खराब करते हैं. सूचना है कि आतंकवादी   रेलवे स्टेशन से खतरनाक हथियार लेकर जाने वाले हैं. कहां हैं आतंकवादी  , कहां है हथियार? चार घंटे रेलवे स्टेशन पर मगज़ पाशी करनी पड़ी. रामू यह कौन लोग हैं? "
"उन्हें रेलवे स्टेशन पर शक में गिरफ्तार किया गया था."
"एक एक को मेरे पास भेजा."
एक आदमी उठ कर इंस्पेक्टर के पास जाने लगा और सिपाही उसे बताने लगे कि इस व्यक्ति को किस लिए गिरफ्तार किया गया है.
"उसके पास से एसिड की बोतल मिली है."
"साहब वह एसिड घातक नहीं है. इससे मैं अपने बीमार पिता के कपड़े धोता हूं. वह एक मेडिकल स्टोर से खरीदी थी. उसकी रसीद भी मेरे पास है और जिस डॉक्टर ने यह लिख कर दी है डॉक्टर की स्टेटमैंट भी. यह कीटनाशक एसिड है. बर्फ की तरह ठंडा. "वह व्यक्ति अपनी सफाई पेश करने लगा.
"जानते हो एसिड लेकर लोकल ट्रेन में यात्रा करना अपराध है?"
"जानता हूँ साहब! परंतु यह एसिड आग लगाने वाला नहीं है."
"अधिक मुंह ज़ोरी मत करो. तुम्हारे पास एसिड मिला है. हम तुम्हें एसिड लेकर यात्रा करने के जुर्म में गिरफ्तार कर सकते हैं."
"अब मैं क्या कहूं साहब!" वह आदमी विवश्‍ता  से इंस्पेक्टर का मुंह ताकने लगा.
"ठीक है तुम जा सकते हो परंतु भविष्य एसिड लेकर ट्रेन में यात्रा नहीं करना."
"नहीं साहब अब तो ऐसी गलती फिर कभी नहीं होगी." कहता हुआ वह आदमी अपना सामान उठाकर तेजी से पुलिस स्टेशन के बाहर चला गया.
अब अशोक की बारी थी.
"हम दोनों एक कंपनी के सेल्‍स  विभाग में काम करते हैं. यह हमारे कार्ड है. कहते अशोक ने अपना कार्ड दिखाया मैंने छु‍िरयों का सेट घरेलू उपयोग के लिए खरीदा था और घर ले जा रहा था. आप देखिए यह घरेलू उपयोग कीछरियां हैं.
"साब उनकी धार बहुत तेज है." बीच में सिपाही बोल उठा.
इंस्पेक्टर एक छुरी उठाकर उसकी धार परखने लगा.
"सचमुच उनकी धार बहुत तेज है. उनके एक ही वार से किसी की जान भी ली जा सकती है."
"इस बारे में क्या कह सकता हूं साहब!" अशोक बोला. "कंपनी ने इस तरह की धार बनाई है. कंपनी को इतनी तेज धार वाली घरेलू उपयोग की छुरियां नहीं बनानी चाहिए."
"ठीक है तुम जा सकते हो. इंस्पेक्टर अशोक से बोला और उससे संबोधित हुआ.
"तुम?"
"साहब यह इसके साथ था."
"तुम भी जा सकते हो परंतु सुनो." उसने अशोक को रोका. पूरे शहर में इस तरह की तलाशियां चल रही हैं. यहां से जाने के बाद संभव है तुम उन छु‍िरयों की वजह से किसी और जगह धर लिए जाओ. "
"नहीं इंस्पेक्टर साहब अब मुझ में छुरियां ले जाने की हिम्मत नहीं है. मैं उसे यहीं छोड़ जाता हूँ." अशोक बोला तो इंस्पेक्टर और सिपाही के चेहरे पर विजयी मुस्कान उभर आई.
वे दोनों अपने अपने ब्रेफ मामले उठाकर पुलिस स्टेशन के बाहर आए तो उन्हें ऐसा लगा जैसे उन्हें नरक से रिहाई का आदेश मिल गया है.

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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