Wednesday, October 19, 2011

Hindi Short Story Brain Tumer By M.Mubin


कहानी     ब्रेन टयूमर   लेखक  एम मुबीन   


जब होश आया तो उसने स्‍वंय  को एक सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ पाया. सामने तारकोल की सड़क पर दूर दूर तक धूप फैली हुई थी. इक्का दुक्का सवारयाँ आ जा रही है. आसपास की गगनचुम्बी इमारतें बालकनियाँ वीरान थीं. धूप की तीव्रता के कारण शायद मैक्केन उनसे झांकने की जसारत भी नहीं कर रहे थे.
सड़क के दोनों ओर दूर दूर तक दुकानों की एक श्रृंखला था. इनमें कुछ दुकानें बंद थीं परंतु बाकी खुली हुई थीं. बंद दुकानों के शेड में दो आवारा कुत्ते धूप और गर्मी से बचने के लिए लेटे हुए थे. या इक्का दुक्का राह भरउनके साये में खरे होकर सस्ता रहे थे. कभी कभी उनकी बेचैन नज़र बार बार वीरान सड़क की ओर उठ जाती थीं. शायद उन्हें अपनी सवारी का इंतजार था.
जो दुकानें खुली हुई थीं उनमें ग्राहकों का नाम व निशान नहीं था. इन दुकानों में दुकानों के मालिक और उनमें काम करने वाले नौकर बैठे या तो ऊँघता रहे थे या मुंह फाड़कर जमाहीाँ ले रहे थे.
समय जानने के लिए उसने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी देखी तो उसका दिल धक से रह गया. कलाई पर घड़ी नहीं थी.
कलाई पर बंधी घड़ी न देख कर याद आया कि उसके पास एक छोटी सी अटैची थी. जिसमें दोपहर के खाने का डिब्बा, एक दो अनावश्यक फ़ाइल, कुछ समाचार पत्रिका और कुछ नोटिस आदि थे.
वह अटैची उसे कहीं नज़र नहीं आई. इसका मतलब था वह अटैची भी घड़ी की तरह गायब है. मन पर उसका हाथ पतलून की जेब की ओर रेंग गया और वह जेब में परस खोज करने लगा.
ज़ाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में जेब में परस की मौजूदगी असंभव सी बात थी. उसने एक ठंडी सांस ली और पैंट की चोर जेब में अपनी उंगलियां डालें उसकी उंगलियां नोटों से टकराएँ तो उसे कुछ संतोष हुआ.
परस में दस बीस रुपए के नोट, कुछ ोज़ीटिंग कार्ड और स्थानीय का मासिक पास था.
धीरे धीरे उसे याद आने लगा कि जब वह घर से ऑफिस जाने के लिए निकला था तो सिर में हल्का हल्का दर्द था. जो समय बीतने के साथ तीव्रता अधिकार करता जा रहा था. उसे अच्छी तरह याद है वह वी टी जाने वाली लोकल ट्रेन में सवार हुआ था. परंतु ट्रेन से यहाँ कैसे पहुँचा? उसे कुछ याद नहीं आ रहा था.
परंतु यह जगह कौन सी है?
इस प्रशन   के मन में सिर उठाते ही उसने सामने वाली दुकानों के साइन बोर्ड गौर से देखे.
"तुम इस समय घाट कोपर में हूँ." बड़बड़ाते हुए उसने अपने हूंठ भींच और फिर आसमान की तरफ देखने लगा. सूरज जिस ज़ाोए पर रुका हुआ था, उससे तो ऐसा लग रहा था कि इस समय दोपहर का एक या डेढ़ बज रहाहोगा.
वह मुंब्रा से आठ बजे लोकल में सवार हुआ था.
इसका मतलब है वह चार, पांच घंटे मदहोश की हालत में रहा.
शरीर पर कोई खराश का निशान नहीं था. इसका मतलब है आज उसके साथ कोई हादसा पेश नहीं आया.
बस कुछ घंटों के लिए उसके मस्तिष्क का शरीर से संपर्क टूटा और इस बीच शरीर क्या किया, और उसके साथ क्या हुआ उसे कुछ याद नहीं आ रहा था. और अब याद आ भी नहीं सकता था.
उसे पता था मस्तिष्क शरीर का संपर्क टूटते ही लोकल से उतर गया होगा और यूं ही अनजान सड़कों पर भी उद्देश्य आवारा आतंकवाद कर रहा होगा. या तो चकरा कर उसी जगह गिर पड़ा होगा जिस जगह उस समय बैठा है. या फिर मदहोश में विचित्र मजनूनाना हरकतें कर लोगों को आकर्षित कर रहा है.
उसकी मजनूनाना हरकतें और उसके हाथ की अटैची किसी गुंडे का ध्यान का केन्द्र बनी होगी.
गुंडे ने बड़े इत्मीनान से उसे उस जगह बिठाया होगा जहां इस समय वह बैठा हुआ है. बड़े इत्मीनान से उसने एक दो बातें की हूंगी और उसकी कलाई से घड़ी उतारी होगी फिर जेब से परस निकाला होगा और हाथ से अटैची लेकर इत्मिनान से चलता बना होगा. वह चुपचाप उसे जाता देख रहा होगा या फिर पेड़ के साये में लेट गया होगा. क्या हुआ होगा? यह केवल अनुमान ही लगा सकता था. उसके साथ क्या हुआ है? किसी से मालूम भी नहीं हो सकता था. मगर जो कुछ उसके साथ हुआ उसे बहुत दुख था.
आज उसे फिर घर वालों और पत्नी को अपने लटने की फर्जी कहानी सुनानी पड़ेगी परंतु कल ऑफिस में क्या उत्‍तर  देगा? बिना सूचना के वो ऑफिस से क्यों गायब रहा. इसी तरह पहले ही उसकी बेशुमार छुट्टियां हो चुकी थीं. और आज तो ऑफिस में उसकी मौजूदगी बेहद जरूरी थी.
उसकी अनुपस्थिति से ऑफिस में हंगामा मच गया है.
डेढ़ दो बज रहे हैं. क्या करें? ऑफिस जाने का अब भी समय है.
परंतु वह अपने आप को शारीरिक रूप से इतना लागर और थका हुआ महसूस कर रहा था कि न तो इसमें ऑफिस जाने की शक्ति थी न घर जाने की. परंतु कार्यालय भी न जाए उसे वापस घर तो जाना ही पड़ेगा.
वह उठा और बोझल क़दमों से स्टेशन जाने का रास्ता ढूँढा स्टेशन की ओर चल दिया. रास्ते में उसने एक गाड़ी के पास से ोड़ा पाउ खाया और चाय पी.
कुछ देर पहले जो भूख की शिद्दत से उसे कमजोरी का महसूस हो रही थी वह कुछ दूर हुई. उसके मन में एक ही बात गूंज रही थी.
"आज फिर उस पर दौरा पड़ा था. और यह दौरा छह घंटे का था."
डॉक्टरों का कहना संभव है शुरुआत में इस तरह के दौरे कुछ घंटों तक सीमित रहें परंतु यही स्थिति रही तो यह यात्रा कई कई दिन और कई महीनों तक भी हो सकते हैं. यानी वह कई महीनों तक होते हुए भी पुरुषों सारहेगा. महीनों ऐसी जीवन गज़ारसकता है जिसका उसकी वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होगा. उसकी वास्तविक जीवन की कोई बात उसे याद नहीं आएगी. और बाद में ला संबंध जीवन की कोई बात भी उसे याद नहीं आएगी . और ऐसा भी हो सकता है इस तरह के दौरों के बीच वह टीोमर फट जाए और उसके जीवन का अंत हो जाए.
"आखिर वह फट क्यों नहीं जाता?" वह झुंझला कर सोचने लगा. "उसे फट जाना चाहिए. इसके फट जाने से मुझे पीड़ा नअक जीवन से मुक्ति तो मिल जाएगी."
"तुम मरना चाहते हो?" इस में कोई ज़ोर से हँसा. "नहीं, तुम मर नहीं सकते तुम मरने से डरते हो. तुम मरना नहीं चाहते हो. इसीलिए तो तुम अपना इलाज नहीं करवा रहे हो. क्योंकि संभव है इलाज दौरान तुम्हारी मौत हो जाए. या तुम जीवन भर के लिए अंधा, लंगड़ा, लोले, अपाहिज हो जाओ. या तुम्हारा मन हमेशा के लिए एक कभी न छुट्टने वाली अंधेरे में डूब जाए. और तुम होश में रहते हुए भी हमेशा के लिए भी होश हो जाओ. "
आखिर वह इन दौरों का प्रकोप  कब तक झेलना रहेगा?
शायद मौत ही उसे इस प्रकोप  से मुक्ति  दिला सकती है. परंतु मौत कब आएगी? जब उसके मस्तिष्‍क का टीोमर फट जाएगा.
उसके मस्तिष्‍क का टीोमर कब फटे है?
इस बारे में तो न कोई बता सकता था और न कोई भविष्यवाणी कर सकता है. सकता है अभी एक सेकंड बाद टीोमर फट जाए या फिर हो सकता है जीवन भर वह टीोमर न फटे और जीवन भर वह प्रकोप  में लगे रहे.
उसे तो इस बात का कतई इल्म नहीं था कि उसके मस्तिष्‍क में कोई टीोमर है. जिसे उर्फ आम में ब्रेन टीोमर कहते हैं. हां यह बात जरूर थी कि बचपन से वह दर्द सिर का रोगी था. और बढ़ती उम्र के साथ साथ दर्द बढ़ता ही गया. और वह पीड़ा नअक प्रकोप  से ग्रस्त रहा.
बचपन में जब उसका सिर दर्द करता तो वह दर्द का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी ले लेता था. उसकी टीचर उसके चेहरे के टिप्पणी और स्थिति देखकर ही अनुमान लगा लेते थे कि सचमुच उसके सिर में सख्त दर्द और वह उसे छुट्टी दे देते थे. इस समय वह बहुत खुश होता था और सोचता था प्रतिदिन  उसका सिर दिखा करे और उसे प्रतिदिन इसी तरह स्कूल से छुट्टी मिलती रहे.
परंतु बढ़ती उम्र के साथ बढ़ने वाली इस सिर दर्द की तकलीफ से उसे कोफ़्त होने लगी थी. उसने इस रोग कई डॉक्टरों से दवाएं लें. डॉक्टरों की दवाओं से अस्थायी तौर पर दर्द गायब हो जाता. परंतु कुछ दिनों बाद फिर सामान्य सिर उठाता.
उसकी पुरानी सिर दर्द की शिकायत देखकर डॉक्टरों ने उसे माईगरीन का रोगी बताया. माईगरीन जिसका कोई इलाज नहीं है. स्‍वंय  को माईगरीन का रोगी करार दिए जाने के बाद उसे कम से कम इस बात का संतोष हो गया कि अ ब उसे दवाओं का इस्तेमाल करने की कोई जरूरत नहीं है. वह एक ऐसे रोग से ग्रस्त है जिस पर दवाएं कारगर साबित नहीं होती.
उसने अपने अंदर दर्द की तीव्रता को सहन करने की शक्ति पैदा की. यह सिलसिला वर्षों तक चलता रहा. जब भी उसके सिर में दर्द उठता वह न तो उसका इलाज करता न कोई दवा गोली लेता. चुपचाप इस दर्द को सहन करता . कुछ घंटे बाद वह दर्द स्वतः गायब हो जाता. परंतु धीरे धीरे उसे पता चला जब वह गंभीर सिर दर्द से ग्रस्त होता है तो कभी कभी बड़ी अजीब हरकतें करने लगता है. जिससे लोगों को इसके बारे में चिंता होनेलगती है.
इस बारे में उसे दोस्तों और ऑफिस के लोगों ने बताया था कि कई पत्र हिस्सा खराब हिस्सा खराब कर डाले और कोरिया पत्र को बुरे सलीके से फाइलों में लगाकर रख दिया. कई महत्वपूर्ण काग़ज़ात पर बुला कारण अनावश्यक ास्टांप लगाकर अपने हस्ताक्षर कर दिए . तो कभी कभी समाचार कार्यालय के पत्र पर घंटों पता नहीं क्या पहला फ़ूल टाइप करता रहा.
उसकी हरकतों से लोगों ने अनुमान लगाया कि इस पर अजीब किस्म के गंभीर दौरे पड़ते हैं. दौरे पड़ने की शिकायतें इससे कई बार उसके घर वालों और दोस्तों ने की थी. दौरों की स्थिति में वह चावल को पानी की तरह पीने लगता और पानी को रोटी की तरह खाने की कोशिश करता. घर की चीजें गलत स्थानों पर रखता या उनका दुरुपयोग करता है.
एक बार तो इन हरकतों से जीवन खतरे में पड़ गई थी. उसने मिट्टी का तेल अपने शरीर पर डाल लिया और पानी समझ कर मिट्टी का तेल पी लिया. सामान्य आने के बाद उसे अपने दौरों का विवरण पता होती तोशरीर में डर शीत लहरें दौड़ने लगतीं. आज उसके साथ क्या हो जाता.
उफ़! वह किस तरह का जीवन गज़ारर रहा है. अंत इन दौरों से मजबूर होकर उसे डॉक्टर की सलाह लेनी पड़ी. डॉक्टर ने उसकी पूरी केस हिस्ट्री सुनी, सिर का एक्स रे निकाला. अच्छी तरह चेकअप किया और उसके बाद उसे बताया गया.
"तुम्हारे मस्तिष्‍क में एक टीोमर है और इसकी वजह से तुम इस तरह की हरकतें करते हो या तुम्हारे साथ ऐसा होता है." डॉक्टर ने उसे बड़ी विवरण से ब्रेन टीोमर या बीमारी के बारे में बताया था. उसके सिर में दर्द इसलिए होता था कि टीोमर के कारण मस्तिष्क के कुछ हिस्सों को खून की आपूर्ति रुक जाती है.
जैसे टीोमर बड़ा होने लगा दर्द की तीव्रता भी बढ़ने लगी. और अब स्थिति यह है कि जब मस्तिष्क के बहुत बड़े हिस्से को रक्त की आपूर्ति रुक जाती है तो मस्तिष्‍क और शरीर का संबंध टूट जाता है. और वह इस हालत में पहला जलूल हरकतें करने लगता है.
"इसका कोई इलाज है डॉक्टर साहब?"
"उसका तो बस एक ही इलाज है. ऑपरेशन द्वारा सिर से इस टीोमर को निकाल दिया जाए." "में प्रकोप  से मुक्ति  पाने के लिए ऑपरेशन कराने के लिए भी तैयार हूं डॉक्टर साहब!"
"परंतु यह ऑपरेशन इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रहे हो. मामला मस्तिष्‍क का है हो सकता है यह ऑपरेशन सफल न हो और इस ऑपरेशन के बीच तुम्हारी मौत हो जाए या यह भी संभव है ऑपरेशन के दौरान तुम्हारे मस्तिष्‍क का हिस्सा प्रभावित जाए और तुम जीवन भर के लिए अंधा, लंगड़ा, लोले या अपाहिज बन जाओ. तुम्हारी आँखों की बीनाई खो जाए. या तुम्हारी शक्ति गोियाई सलब हो जाए. यह बड़ा पुर्र ऑपरेशन होता है. अगर ऑपरेशन के दौरान मस्तिष्‍क का कोई
भी हिस्सा मामूली रूपपर प्रभावित हो जाये तो वह अपना काम बंद कर देता है और उसके प्रभाव क्या हो सकते हैं तो बता ही चुका हूँ.
"नहीं नहीं डॉक्टर साहब!" डॉक्टर की बात सुनकर वह कांप उठा था. "मैं मरना नहीं चाहता. मैं अंधा, लंगड़ा, लोला सकता हूँ. नहीं नहीं मैं ऑपरेशन नहीं करूंगा. चाहे मुझे कितना ही दर्द कितनी ही तकलीफ़ सहनी पड़े. चाहे मुझे कितने ही गंभीर दौरों के प्रकोप  से गुजरना पड़े. अगर मेरे मस्तिष्‍क का टीोमर फट जाता और मेरी मौत हो जाती है तो मुझे मौत मंजूर है क्योंकि वह मेरी प्रकृति मौत हो गयी. परंतु ऑपरेशन करके न तो गैर प्राकृतिकजीवन जीना चाहता हूँ न गैर प्राकृतिक मौत मरना चाहता हूँ. "
डॉक्टर ने उसे बहुत समझाया परंतु उसने चिकित्सक एक न मानी. उसने किसी को नहीं बताया कि उसके मस्तिष्‍क में एक टीोमर है और टीोमर की वजह से प्रकोप  में लगे है. और संभव है वह टीोमर एक दिन उसकी जानले ले. ज़ाहिर सी बात थी वह परिवार या दोस्तों को अपनी बीमारी के बारे में बताता तो वह उसकी जान बचाने के लिए उसे जीवित देखने के लिए पर ऑपरेशन के लिए जोर डालते. और ऑपरेशन का परिणाम क्या हो सकता है उसे पता था.
इसलिए उसने अपनी भलाई इसी में समझी कि अपने रोग के बारे में किसी को न बताया जाए. और इस तरह हर तरह के दबाव से मुक्त रहकर कुछ दिनों की ही सही परंतु बाकी बची ज़िंदगी तो वह चैन से बैठ पाए. इसकेके बाद उसके साथ वही होता रहा जो पहले होता आ रहा था. कभी कभी दर्द की तीव्रता इतनी बढ़ जाती कि वह दीवारों से अपना सिर टकराकर लहोलहान कर लेता था. कभी कभी यात्रा स्थिति में उसके हाथों से ऐसे काम दाखिल हो जाते थे जिनके नुकसान की भरपाई वह महीनों तक नहीं कर पाता था. उसे ऑफिस से कई मीमो मिल चुके थे. क्योंकि वे यात्रा के रूप में कार्यालय के कई जरूरी कागजात फाड़ चुका था.
एक बार उसके बॉस ने उसके दौरों से विनंती  आकर उसे मीमो दे दिया कि वह पंद्रह दिन के भीतर अपना मेडिकल सर्टिफिकेट पेश करे अन्यथा उसे नौकरी से हटा दिया जाएगा. नौकरी से हटा के विचार से ही वह काँप उठा. अगर उसे नौकरी से निकाल दिया गया तो वह क्या करेगा, कौन उसे नौकरी देगा, ऐसी हालत में क्या वह कोई दूसरा काम कर पाएगा, उसके घर वालों और पत्नी बच्चों का गुजर कैसे होगा. बरसने उसे अपनी नौकरी बचाने केएक डॉक्टर को रिश्वत देकर अपनी फटनीस का झूठा प्रमाणपत्र प्राप्त करना पड़ा. तब से वह बहुत डरता था. और रात दिन भगवान से प्रार्थना करता था कि कम से कम अपने कार्यालय में यात्रा न पड़े. यदि पड़े भी तो उसके हाथों कोई ऐसा न हो जिससे उसकी नौकरी पर आंच आए. परंतु यह उसके बस में कहाँ था. अगर यही बात उसके बस में होता तो उसके लिए कोई समस्या ही नहीं था.
कई बार ऐसा हुआ कि दौरे की स्थिति में भटक वह पता नहीं कहा से कहां पहुंच गया या सवारी से टकरा कर सख्त घायल हो गया. दौरे की स्थिति में उसका सामान कहाँ गिर गया या किसी ने चुरा लिया? उसे पता नहीं हो सका. वह घर से निकलता तो उसे लगता अब उसके सिर का टीोमर फट जाएगा और अब उसकी मौत हो जाएगी. उसकी लाश ला वारिस लाश की तरह सड़क पर भी गोर और कफ़न पड़ी रहेगी . घर वालों को उसकी मौत की खबर भी नहीं मिल पाएगी.
ऑफिस में होता तो काम करते करते बार बार उसे लगता कि उसका टीोमर अब फट पड़ेगा और उसके जीवन का अंत हो जाएगा. रात में जब वह सोने के लिए लेटा तो हर रात उसे लगता यह उसके जीवन की अंतिमरात है. रात के किसी पहर उसके सिर का टीोमर फट जाएगा और सवेरे घर वालों को बिस्तर पर उसकी लाश मिलेगी.
पता नहीं उसके जीवन एक पल भी बाकी है या फिर उसे प्रकोप  में अभी वर्षों जीना है. वह तरशनको बनकर जीवन और मौत के बीच लटका हुआ था. न उसे जीवन अपने मोह से मुक्त कृपा रही थी और न मौत उसे गलेलगा रही थी. वह बोझल क़दमों से रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ रहा था अचानक सिर में हल्का हल्का दर्द होने लगा. इसकी तीव्रता बढ़ती जा रही थी. उसके हृदय की धडकनें तेज हो गईं. फिर ...... दर्द ...... फिर यात्रा. ओह गॉड!. वह घर वापस पहुंच पाएगा भी या नहीं?
और सिर पकड़ करवह एक जगह बैठ गया.
 
...

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल  09322338918

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