Saturday, October 8, 2011

Hindi Short Story Daldal Peh Tiki Chhat By M.Mubin

कहानी दलदल पर टिकी छत लेखक एम. मुबीन
तीन दिनों में ही पता चल गया कि उसे मगन भाई ने कमरा किराए पर नहीं दिया कमरा किराए पर देने के नाम पर फ़्ग लिया है ।
अब सोचता है तो स्वयं उसे आश्चर्य होता है । उससे इतनी बडी भूल किस तरह हो गई । बस कुछ देर के लिए वह उस बस्‍ती में आया मगन भाई ने उसे अपनी बंद चाल का कमरा खोलकर बताया । 10 बाय 12 का कमरा था । जिसके एक कोने में एक छोटा सा किचन टेबल बना हुआ था । उससे लगकर एक तंग सा बाथ रूम ! जिसे वहां की भाषा में मेरी कहा जाता था । कमरें में एक दरवाजा था जो तंग सी गली में खुलता था दो खिडाकियां थीं जिनके कारण हवा और प्रकाश का अच्‍छा प्रबंध था । पकर्श पर रपक लदी थी, दिवारों का पलस्तर जगह जगह से उखडा हुआ था । पलस्तर सिमेंट का था । छत पतरे की थी । गली के दोनों ओर कच्चे झोंपडों का सिलसिल था जो दूर तक पैकल हुआ था। बीच से एक गंदी नाली बह रही थी जिससे गंदा पानी उबलकर चारों ओर पैकल रहा था । जिसकी र्दुगंध से मस्तिष्‍क फटा जा रहा था । मगनभाई कि उस चाल में सात, आठा कमरे थे । उसके मस्तिष्‍क ने तुरंत उसे निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया ।
उसे इस शहर में इतने कम दामें में इतना अच्‍छा कमरा किराए पर नहीं मिल सकता । इस शहर में इससे आच्छे कमरे की आशा रखना बेकार की बात थी और वह तुरंत कमरा किराए पर लेने के लिए तैयार हो गया ।
दूसरे दिन उसने पच्चाीस हजार रूपये डिपाजिट के रूप में आदा किए । मगन भाईने तुरंत किराए के करारनामें के कागजात हस्ताशर करके उसे दे दिए। बिजली और पानी का अपनी तौर पर प्रबंध करने के बाद उसे किराए के रूप में मगनभाई को तीनसौ रूपया महिना देने थे । किराए का करार केवल 11 महीनों का था परंतु मगनभाई ने वादा किया था वह 11 महीनों के बाद भी उससे कमरा खाली नहीं कराएगा । वह जबतक चाहे उस कमरे में रह सकता है । यदि वह कहीं और इससे आच्छे कमरे का प्रबंध कर लेता है तो मगनभाई उसे उसके डिपाजिट की राशि वापस कर देगा ।
उस शाम वह अपने मित्र के घर से अपना थोडा सा सामन लेकर अपने मित्र और उसके घर वालों को आलविदा कहकर अपने नए घर में आ गया ।
दो तीन घंटे तो कमरे की स फाई में लग गए और शेष एक घंटा सामन को कमरे में सजाने में ... !
कमरे में बिजली का प्रबंध था इसलिए सिर्फ बलब लगाना पडा ।
कमरी की स फाई से वह इतना थका गया था कि उस रात वह बिना खाए पिए ही सो गया ।
सवेरे नित्य के समन छ बजे आंख खुली तो वह स्वयं को ताजा अनुभव कर रहा था । पानी आया था घर के सामने एक सरकारी नल पर औरतों की भीड थी ।
‘‘पानी का प्रबंध करना चाहिए !’’ उसने सोचा । परंतु पानी भरने के लिए घर में कोई बर्तन नहीं था । चहलकदमी करते वह अपने घर से थोडी दूर आया तो उसे एक किराने की दुकान दिखाई दी । उस दुकान पर लटके पानी के केन देखकर उसकी बांछे खिल गई । पानी के केन खरीदकर वह नल पर आया और नंबर लगाकर कतारमें खहा हो गया ।
नल पर पानी भरती औरतें उसे विचित्र आंदाज से घूर कर आपसमें आखों से एक दूसरे को कुछ इशारे कर रही थीं ।
उसका नंबर आया तो उसने पानी का केन भारा और अपने घर आया।
स्नान करके उसने कपडे बदले । वह घर में नाश्ता नहीं बना पाया था नाश्ता बनाने के लिए उसके पास आवश्यक सामन नहीं था ।
किसी होटल में नाश्ता करने के बारे में सोचते हुए वह घर से चल दिया।
सोचा नाश्ता करने तक आफिस जाने का समय हो जाएगा उस दिन वह अपने आपको बडा प्रसन्न, चुस्त ओर तरो ताजा अनुभव कर रहा था ।
एक आभास बार बार उसके भीतर करवटें ले रहा था कि अब वह इस शहर में बेघर नहीं है अब इस शहर में उसका अपना घर भी है । उसकी अपनी छत भी है जिसके नीचे वह आराम कर सकता है ।
कल तक यह एहसास उसे कचोकता था इस शहर में उसके पास एक अच्‍छी नौकरी है परंतु उसके पास रहने के लिए एक घर, सिर छिपाने के लिए एक छत नहीं है । वह दूसरे की छत के नीचे शरण लिए हुए है । उस छत की शरण कभी भी उसके सिर से हट सकती है ।
उसे अपनी योग्यता के आधार पर उस शहर में नौकरी तो मिल गई थी, परंतु उसके सामने सबसे बडी समस्या सिर छिपाने की थी । उस शहर में ना तो कोई उसका रिश्तेदार था और ना ही कोई पारिचित ।
उसने नौकरी ज्वाईन तो करली परंतु आवास की समस्या उसके सामने किसी दानव के समन मुंह फाडकर खडी हो गई ।
कुछ दिनों के लिए उस समस्या का हल उसने एक होटल में किराए का कमरा लेकर ढूंढ लिया । परंतु कुछ ही दिनों में उसे अनुभव होने लगा उसे जितना वेतन मिलता है उस वेतन में ना तो वह उस होटल में रह सकता है और ना खा पी सकता है ।
उसने दूसरे सहारे की तलश शुरू की और उसे एक होस्टल में सिर छिपाने का स्थान मिल गया ।
दो चार महीने उसने होस्टल में निकाले परंतु एक दिन वह घोर संकट में फंस गया । एक दिन पुलिस ने होस्टल पर छापा मरा और होस्टल के सारे निवासियों को गिरपक़्तार कर लिया ।
होस्टल से पुलिस को मदक पदार्थ मिले थे । उस होस्टल में कुछ गुंडा तत्व मदक पदार्थो का कारोबार करते थे ।
बडी मुश्किल से वह स्वयं को पुलिस के चंगुल से छुडा सका ।
वह एक बार फिर बेघर हो गया था । वह अपने लिए किसी छत की तलश कर रहा था कि आचानक उसकी मुलकात अपने एक पुराने मित्र से हो गई ।
वह मित्र उसे बहुत दिनों बाद मिल था उस मित्र का उस शहर में एक छोटा सा कारोबार था । उसने जब उस मित्र के सामने अपनी समस्या रखी तो उसने बडे आपनत्व से उसके सामने प्रस्ताव रखा कि जब तक उसका कोई प्रबंध नहीं हो जाता है चाहे तो वह उसके घर मे रह सकता है जब प्रबंध हो जाए तो चले जाना ।
उसे उस समय अपना वह मित्र एक देवता के समन प्रतीत हुआ ।
वह अपने उस मित्र के घर रहने लगा और साथ ही साथ अपने लिए कोई कमरा भी ढूंढने लगा ।
शहर में किराए से मकान मिलना मुश्किल था और मकान खरीदने का उसमें सामर्थ नहीं था । जो मकान किराए पर मिल रहे थे उनका किराया ही उसके आधे वेतन से ज्यादा था । उस पर डिपाजिट की भारी राशि की शर्त....
कुछ दिनों बाद थककर उसने सोचा उसे ऐसे क्षेत्र में मकान तलश करना चाहिए जहा मकानों के दाम कम हो भाले ही उस क्षेत्र का स्तर उसके स्वभाव आनुसार ना हो उसे इन बातों से क़्या लेना देना था । उसे तो केवल रात में सिर छिपाने के लिए एक छत चाहिए थी ।
दिन भर तो उसे उस छत से कुछ लेना देनी नहीं था क़्योंकि दिन भर तो वह आफिस में रहेगा ।
उसे एक इस्टेट इजंट ने मगनभाई से मिलया । मगनभाई ने उसे बताया बस्‍ती में उनकी एक चाल है । उस चाल में एक कमरा खाली है वह कमरा वह उसे पच्चाीस हजार रूपये डिपाजिट पर दे सकता है ।
‘‘ठीक है मगनभाई मैं डिपाजिट का प्रबंध करके आपसे मिलता हूं’’ कहकर वह चल आया और पैसों के प्रबंध में लग गया ।
इतने पैसों का प्रबंध बहुत काफ़्नि काम था । अपने शहर जाकर उसने दोस्तों, रिश्तेदारों से कर्ज लिया, घर के गहने, बँक में रखकर कर्ज लिया और डिपाजिट का प्रबंध करके वह वापस आया और मगनभाई से मिल । मगनभाई ने उसे कमरा दिखाया । उसने कमरा पसंद करके पैसे मगनभाई को दे दिए और अपनी नई छत के नीचे चल आया ।
शाम को अपनी जरूरत की चीजों और सामन से लदा जब वह बस्‍ती में आया तो अपने घर के पास पहुंचकर उसके पैर धरती में गढ गए । गली में चारों और पुलिस पैकली हुई थी ।
‘‘क़्या बात है भाई,’’ उसने एक व्‍यक्ति से पूछा । ‘‘यह गली में पुलिस क़्यों आई है ? क़्या हुआ है ?’’
‘‘और क़्या होगा ? दारू के आड्डे पर झगडा हुआ, झगडे में चाूक चल गया और एक आदमी टपक गया......’’ कहता वह आदमी आगे बढ गया ।
‘‘तो इस स्थान पर शराब का आड्डा भी है’’ सोचता वह आगे बढा । अपने रूम के दरवाजे पर पहंुच कर उसने सामन अपने पैरों पर रखा और कमरे का दरवाजा खोलने लगा ।
सामन कमरे में रखकर ममले का पता लगाने के लिए बाहर आया तो तब तक पुलिस जा चुकी थी और लश भी उठाई जा चुकी थी । आसपास के लेग उस बारे में बाते कर रहे थे ।
‘‘आज तो पुलिस ने आड्डा बंद कर दिया है कल फिर चालू हो
जाएगा ।’’
‘‘यह आड्डां कहा है’’ उसने पूछा तो लेग उसे सिर से पैर तक देखने लगे ।
‘‘बाबू किस दुनिया में हो जिस चाल में तुम रहते ड़ों उसी में तो यह शराब का आड्डा है ।’’
‘‘मेरी चाल में शराब का आड्डा’’ आश्चर्य से वह उछल पडा।
‘‘हा ना केवल शराब का, बालिक एक जुए का आड्डा भी है । एक
कमरें में मदक पदार्थ बिकते है और दूसरे को कमरों में धंदा करने वालियां
रहती है ।’’
यह सुनते ही उसकी आखों के सामने तारे नाचने लगे ।
उसकी चाल मे जुए, शराब और मदक पदार्थ बेचने वालों के आड्डे है यहां वेशाए रहती है और अब वह भी उसी चाल में रह रहा है ।
उस दिन तो उसे केवल यह पता चल कि वह कैसी जगह रहने के लिए आया है परंतु दो चार दिनों में यह पता चल गया कि वहां रहना कितना बडा प्रकोप है ।
लेग बेधडक उसके कमरें में घुस आते और उससे तरह तरह की पकरमईशें करने लगते
‘‘एक बोतल चाहिए’’
‘‘जरा एक आफू की गोली देना’’
‘‘एक चरस की पुडिया चाहिए’’
‘‘एक गर्द की पुडिया चाहिए’’
‘‘चंदा को बुलना आज उसका फुल नाईट का रेट देगा’’
वह सब सुनकर अपना सिर पकड लेता और उस व्‍यक्ति को पकड के घर बाहर निकाल देता और उसे बताता कि उसकी इच्छित वस्तु उसे कहा मिल सकती है ।
क़्योंकि इस बीच उसे पता चल गया था कि कहा कौनसा धंदा चलता है और उस धंदे का मलिक कौन है ?
कमरे का दरवाजा खुल रखना एक सिर दर्द था इसलिए उसने कमरे के दरवाजे को हमेशा बंद रखने में ही खैरियत समझी थी । परंतु दरवाजा बंद रखना और भी आधिक सिर दर्द था ।
दरवाजा जोरजोर से पाटी जाता जैसे अभी तोड दिया जाएगा । वह दरवाजा खोलता तो वही प्रश्न सामने होते थे जो दरवाजा खुल रखने पर आजनाबियों द्वारा घर में घुसकर पूछे जाते थे ।
वह सोचता वह आकेल है केवल रात को सोने के लिए यहां आता है तो उसकी यह हालत है यदि उसका परिवार इस कमरे में रह रहा होता तो ? इस कल्‍पना से ही वह कांप उठता था ।
यहां उसके आकेले का रहना मुश्किल है तो वह भाल यहां अपने परिवार को लने का किस तरह सोच सकता है ?
हर दिन एक नई कहानी, एक नया हंगाम, एक नई घटना सामने आती थी । शराबी जुआरियों का आपसमें लडना तो एक आम सी बात थी । एक ग्राहक चंपा के घर में जाने के बजाए सामने वाले रघु के घर में घुस गया और उसकी पत्‍नी से छेडछाड करने लगा ।
परंतु इस छत के नीचे तो हर शण आतंक में रहकर गुजारना है ।
इन बातों से घबराकर उसने निर्णय ले लिया कि उसे यह घर छोड देना चाहिए जब तक किसी और छत का प्रबंध नहीं हो जाता भाले ही उसे बेघर रहना पडे परंतु इस प्रकोप और आतंक से तो वह बचा रहेगा ।
वह सीधा मगनभाई के पास गया और बोल ‘‘मेरा डिपाजिट वापस कर दिजिए मुझे आपके कमरे में नहीं रहना है ?’’
‘‘अरे तुम ग्यारह महीने से पहले वह कमरा किस तरह वापस कर सकते हो । हमरा ग्यारह महीने के किराए का एग्राीमेंट हुआ है । ग्यारह महिने से पहले तुमहारा डिपाजिट किस तरह वापस कर सकता हूं ।’’
‘‘तुम ग्यारह महीने की बात करते हो मैं उस स्थान पर एक पल भी नहीं रह सकता अपनी पूरी चाल तुमने, शराब, जुए, वेश्या के आड्डे चलने वालों को किराए पर दे रखी है और वही जगह मुझ जैसे सज्जन व्‍यक्ति को भी धोखे से किराए पर दे दी । तुम्‍हें ऐसा नीच काम करते हुए शर्म आनी चाहिए थी । मेरे बजाए किसी शराब, जुए वेश्या का आड्डा चलने वाले को देते वह तुम्‍हें ज्यादा किराया देता ।’’
‘‘अरे भाई, उन लेगों को मैंने किराए पर कमरे कहा दिए है । मैंने उस जगह चाल बाई थी और इस ललच में कमरे किराए पर नही दिए थी कि मुझे ज्यादा डिपाजिट और किराया मिलेगा वे गुण्डे बदमश लेग ताले तोडकर उन कमरोंमें घुस गए और अपने काले धंदे करने लगे । मैंने सिर्फ एक शरीपक आदमी को वहां वह कमरा किराए पर दिया था जो उस वातावरण को देख कर कुछ दिनों में ही भाग गया । उस कमरे पर भी गुंडे कब्जा ना करले इसलिए वह कमरा मैंने तुम्‍हें किराए पर दे दिया अब तुम भी उस कमरे को खाली करने की बात कर रहे हो अरे बाबा जाओ मैं वह कमरा तुम्‍हें दे दिया हमेशा के लिए दे दिया । मुझे उस कमरे का किराया भी नहीं देना । यदि तुम वह कमरा छोड दोगे, और मैं तुम्‍हें तुमहारा डिपाजिट वापस दूंगा तो उस कमरे पर कोई गुंडा कब्जा कर लेगा ।’’
मगनभाई की बात सुनकर उसका क्रोधठंडा पड गया । उसे लगा मगनभाई तो उससे आधिक दया का पात्र है ।
‘‘मगनभाई, गुंडो ने तुमहारी पूरी चाल पर कब्जा कर लिया और तुमने पुलिस में शिकायत भी नहीं की ।’’
‘‘शिकायत करके क़्या मुझे अपना जीवन गंवाना है ? वे सब गुण्डे लेग है उनके मुंह कौन लगेगा । पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाडेगी । पुलिस उनसे मिली हुई है । शिकायत पर थोडी देर के लिए उन्‍हे आंदर कर देगी बाद में आजाद होकर वे मेरी जान के दुश्मन बन जाएंगे इसलिए मैंने यह सोच लिया है कि वह मेरी चाल है ही नहीं मुझे धंदे में घाटा हो गया है । देखो आगर तुम वहां रहना नहीं चाहते हो तो किसी को भी वह कमरा अपना डिपाजिट लेकर किराए पर दे दो मैं उसे नया किराया नाम बनाकर दे दूंगा ।’0ं
मगनभाई की बातें सुनकर वह चुपचाप वापस घर आ गया । उस रात उसे रात भर नीदं नहीं आई । उसके सामने एक ही प्रश्न था । वह वहां रहे या वहां से चल जाए ?
फिलहाल तो ऐसी परिस्थिती थी वह उस स्थान से कहीं भी जा नहीं सकता था और वहां रहना एक प्रकोप था ।
परंतु वह इतना भी कायर नहीं था किस प्रकोप से भायभीत होकर पलयन कर दे ।
उसने स्वयंको हर तरह की परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार कर लिया । उसे केवल रातही में तो उन मनासिक यातनाओं को झेलना पडता था । दिन में तो वह आफिस में रहता था ।
दिन में वहां क़्या होता है, या जो कुछ होता है उसे उन बातों से कुछ लेना देना नहीं था । परंतु रात घर आने पर दिने में जो कुछ वहां हुआ है उसे सब मलूम पड जाता था ।
दो शराबियों ने उषा को छेडा ।
एक गुंडे ने आशोक की पत्‍नी की इज्जत लूटने की कोशिश की ।
गुंडो में जमकर मर पीट हुई कई घायल हुए आज गुंडो के टकराव में पिस्तौल चल पडी । गोली से कोई गुंडा घायल तो नहीं हुआ परंतु गोली सामने वाले लक़मण के लडके को जा लगी जिसे आस्पताल ले जाया गया उसकी स्थिति नाजुक है ।
जो लेग उसे यह कहानियां सुनाते वह उनपर बरस पडता
‘‘कब तक तुम लेग यह सब सहन करते रहोगे ? तुम शरीपक लेग हो, यह शरीपकों का मेहलल है, गुंडो ने इस पर कब्जा करके शरीपकों को यहां रहने के लयक नहीं रखा है । तुम चुपचाप सब सहन करते रहे तो तुम लेगों के साथ भी यही सब होने वाल है । यदि इससे मुएिक़्त चाहते हो तो इसके विरूध एक हो जाओ और इसके विरूध आवाज उठाओ... गुंडो और बदमशों के विरूद्ध पुलिस में शिकायत करो । तुमहारी शिकायत पर पुलिस को कारवाई करनी ही पडेगी और यह सब रूक जाएगा ।’’
‘‘जावेद भाई हम ये सब नहीं कर सकते’’ उसकी बातें सुनकर वे सहम गए । ‘‘यदि हमने ऐसा किया तो संभाव है पुलिस कारवाई करे, परंतु वह ज्यादा दिनों तक गुण्डों को लकआप में नहीं रख पाएंगे । पुलिस में शिकायत करने पर वह हमरे शत्रु बन जाएंगे और आजाद होते ही हमसे बदल जरूर लोंगे। इसलिए हम सोचते है उन गुण्डों से क़्या उलझा जाए ? जो कुछ हो रहा है उसे चुपचाप सहन करने में ही भालई है ।’’
‘‘यही तो आप लेगों की कमजोरी है । विरोध करने का ना साहस है ना शाएिक़्त, जिससे गुंडो का साहस बढता जा रहा है । विरोध नहीं कर सकते सब गलत सलत सहन कर लेगे ।’’ वह क्रोधमें बोल ‘‘यदि मेरे साथ एक दिन भी ऐसा कुछ हुआ तो मैं बिलकुल सहन नहीं करूंगा । जो मेरे साथ ऐसी वेसी हरकत करेगा उसे मजा चखाउंगा....!’’
दूसरे दिन जब वह आफिस से आया तो उसे तीन चार गुंडो ने घेर लिया । उनकी सूरते और चेहरे ही बता रहे थे वे गुंडे है ।
‘‘ऐ बाबू, क़्यों बे ! क़्यों बहुत बडा लीडर बनने की कोशिश कर रहा है ? बस्‍ती वालों को हमरे विरूध भाडका रहा है तू नया नया है इसलिए तुझे हमरी ताकत का आंदाजा नहीं है । ये लेग पुराने है इन्‍हे हमरी ताकत का पता है इसलिए ये कभी हमसे नहीं उलझते । आगर यहां रहना है तो भालई इसी में है कि तुम भी पुराने बन जाओ । हमरी शाएिक़्त जान ले और हमसे मत उसझो जैसा चल रहा है चलने दो... जो कुछ हो रहा है होने दो...’’ एक गुंडा उसे घुरता बोल ।
‘‘दादा ! यह बातों से नहीं मनेगा एक दो हड्डाी पसली टूटेगी तो सारी लीडरी भूल जाएगा । इसे अभी मजा चखाता हूं’’ कहते एक गुंडे ने अपनी हाकी स्टाीक हवा में लहराई ।
‘‘नहीं आज के लिए इतनी वार्निंग कापकी है ।’’ उस गुंडे ने हाकी वाले गुंडो को रोका ।
‘‘इसके बाद इसने होशियारी की तो मेरी ओर से इसकी चार हाड्डियां ज्यादा तोडना कहता वह सबको लेकर चल गया... ।’’
वह सन्नाटे में आ गया । उसका सारा शरीर पसीने में भीग गया उसे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे कई हाकी स्टाीक उसके शरीर से टकराए है । उसका शरीर पीडा का पकोडा बना हुआ है ।
उसे रात भर नींद नहीं आई ।
आंखो के सामने गुंडो के चेहरे और कानो में उनकी वार्निंग गूंजती रही। यदि आज वे गुंडे हाथ उठा देते तो वह किस प्रकार स्वयं को उनसे बचा पाता ?
उसके मस्तिष्‍क में एक ही बात चकरा रही थी जो आज टल गया वह कल हो भी सकता है ।
इससे बचने का एकही रास्ता है वह यहां चुपचाप आंखे बंद करके रहे। जो कुछ यहां हो रहा है उससे आंजान बना रहे तो उसे कभी कोई खतरा नहीं होगा । परंतु वहां रहना भी तो किसी नरक में रहने से कम नहीं था ।
आए दिन गुंडो के झगडे, पकसाद, दंगा, शराबी, जुआरी, नशेबाज, लेगों का बेधडक घर में घुस आना.... बदतमीजी से दरवाजा पीटना, बार बार पुलिस के छापे, छापों में गुंडे, बदमसों का निकल भागना शरीपों का पकडा जाना ।
बात बात पर चाकु, छुरी का चलना । आसपास रहने वालों की पत्‍नी, बहनों, मंओ से गुण्डों की बदतमीजिया ।
वह सोचने लगा किसी से डिपाजिट लेकर यह कमरा उसे देकर इस नरक से निकल जाए फिर सोचता वह आकेल इस नरक में नहीं रह पाता है कोई शरीपक, बाल बच्चे वाले को इस नरक में डालना क़्या उचित होगा ?
उसकी अंतरआत्म इसके लिए तैयार नही होती थी और उसे उस छत के नीचे रहने के लिए स्वयं से समझौता करना पडा .....! द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

No comments:

Post a Comment